बशीर बद्र: जज्बात से गजल की पलकें संवारने वाला शायर
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बशीर बद्र यानी आम आदमी का शायर. बशीर बद्र, जिनके शेर करोड़ों लोगों की जिंदगी में तांकझांक करते हुए उनकी रोजमर्रा की तकरीर और गुफ्तगू का हिस्सा हैं. बशीर बद्र, जिनके कलाम संसद की ताकतवर दीवारों को प्यार से थपथपाते हुए नेशनल हाई-वे पर चल रहे किसी ट्रक की नंबर प्लेट तक का सफर तय करते हैं.
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में .
2 जुलाई, 1972 को हुए शिमला समझौते के वक्त पाकिस्तान के वजीर-ए-आज़म जुल्फिकार अली भुट्टो ने भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को डॉ. बशीर बद्र का ये शेर सुनाया था.
दुश्मनी जमके करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त बन जाएं तो शर्मिन्दा ना हों